बिना कसूर कैद
रियाज़ तनवीर शेख@31/01/2017 आसमान में उड़ने की आजादी लिए पंछी सरहदों के पार तक चले जाते है. बन्धनों से मुक्त ये हर रोज एक नयी उड़ान भरते हैं. इनकी मधुरता चचह्चाहट और खूबसूरती का ज्यादातर लोग प्रशंसक हैं. इनकी सुरीली आवाजे अब आस पास से तो गायब ही हो चुकी हैं. कुछ की आज भी सुनाई देती है. पर वो पिजरे में कैद रखकर ही सुनी जा रही है. बिना कसूर के कैदी बन बेजुबान पंछी चचह्चाहते हैं. अच्छा भी लगता. है पर इनकी चहचहाहट में आजादी की चाह हम जुबान वालो को समझ नही आती है....
Bhagambhaag Me Hang Hoti Life...
भागमभाग में हैंग होती लाइफ...
सेराज खान@30/01/2017
कुछ समय पूर्व तक हैंग शब्द का इस्तमाल अकसर किसी और मकसद के लिए होता था। इसके पीछे गुस्सा, निराशा, परेशानी का समावेश भी दिखता था। हैंग का कुछ अंदाजा तो आपने लगा ही लिया होगा। खबरों में आएदिन हैंंगिंग की बात पढ़ते सुनते रहते हैं। अब हैंग ने नया अवतार ले लिया है। मोबाइन कम्प्यूटर के संसार ने इसे इसका वजूद उपहार स्वरूप या सजा के तौर पर भेंट किया हैै। जबतक दिन में दो चार बार हैंग शब्द का उच्चारण न सुन लें अब दिन कटता ही नहीं। सुनने का मन न भी हो तो भी यकीन मानिए आपके जान पहचान वाले इसकी याद दिलाते ही देते होंगे। हैंग होना समस्या तो है पर यह आपकी आधुनिकता भी दर्शा ही जाता है। हैंग की समस्या से पीड़ित हैं तो समझ लीजिए आप आज के जमाने के साथ चल रहे हैं।
हैंग से मतलब मोबाइल या कम्प्यूटर के हैंग होने से ही निकालिए तो अच्छा हैै। वरना इसके कई अर्थ और भी हैं, जो कुछ के लिए आधुनिकता के परिचय बने हुए हैं। बहरहाल हैंग ने मोबाइल कम्प्यूटर से निकलकर तेज रफतार लाइफ में भी प्रवेश करना शुरू कर दिया है। तो हैंग से बचकर रहने में ही भलाई है। खुशियां तो हैंग से निजात पाकर ही मिलेगी। बहरहाल रोज की भागादौड़ी और व्यस्त दिनचर्या ने हमें लगभग हैंग का शिकार बना ही दिया है। लाइफ भी हैंग होने लगी है। पर एंटीवायरस कम ही हैं। सुबह से लेकर शाम तक इशारों पर नाचना। समझदार तो इशारे करने वालों को समझ ही सकते हैं। इशारे करने वालों को भी कोई न कोई इशारे कर ही रहा होता है। उसे भी क्या दोष दें। इनसे उपर वालों की बात ही अलग है। खैर बात हैंग की ही करते हैं। सुबह किसी आईफोन की तरह लगने वाले अच्छे भले कामकाजी इंसान की हालत तो शाम ढलते ढलते अनब्रांडेड मोबाइल की तरह हो जाती है। घर पहुंचते पहुंचते स्विच आॅफ सी स्थिति हो जाती है। इस बीच हैंग होते रहना दिनभर चलता रहता है। नेट की दुनिया में वक्त बड़ी तेजी से गुजरता महसूस हो रहा है। जैसे 4जी का डेटा पैक। लाइफ तो बस हर रोज हैंग होते होते कट रही है। इस हैंग का एंटीवायरस खोजने को लेकर शायद ही कोई विशेषज्ञ सिर खपा रहा होगा। क्योंकि वह भी तो हैंग के अजीब कष्ट से सुरक्षित न रहता होगा। हैंग ने हमारे जीवन में पैठ बना लिया है। रोज रोज इसका दायरा भी बढता जा रहा है। किसी की बातों को सुनकर, किसी चीज को देखकर, काम के प्रेशर से, किसी की चुगली तो किसी के ताने सुनकर हैंग होना पड़ना आम होता जा रहा है । दिक्कत बढ़ रही। एंटीवायरस नहीं मिल रहा। कई तो हैंग का उपचार बताने को लेकर हैंग हुए जा रहे हैं। ये कर लो, वो कर लो, ये किया करो, ऐसे रहा करो तमाम तरह की नसीहतें। कुछ नसीहते एवं उपाए तो ऐसे होते है जिन्हें सुनकर ही दो दिन तक हैंग होना पडता है। तो दोस्तों हैंग की समस्या बढती ही जा रही है। हैंग के लिए हम भी थोड़े जिम्मेदार तो हैं ही। चिंतन मनन की पहले ही जरूरत थी। अब वक्त निकल गया है। नवजवानों के पास अब भी समय है। अभी से एंटीवायरस तैयार करने की कोशिस करें। ताकि आगे लाइफ हैंगमुक्त आनंदमय हो।
सेराज खान@30/01/2017
कुछ समय पूर्व तक हैंग शब्द का इस्तमाल अकसर किसी और मकसद के लिए होता था। इसके पीछे गुस्सा, निराशा, परेशानी का समावेश भी दिखता था। हैंग का कुछ अंदाजा तो आपने लगा ही लिया होगा। खबरों में आएदिन हैंंगिंग की बात पढ़ते सुनते रहते हैं। अब हैंग ने नया अवतार ले लिया है। मोबाइन कम्प्यूटर के संसार ने इसे इसका वजूद उपहार स्वरूप या सजा के तौर पर भेंट किया हैै। जबतक दिन में दो चार बार हैंग शब्द का उच्चारण न सुन लें अब दिन कटता ही नहीं। सुनने का मन न भी हो तो भी यकीन मानिए आपके जान पहचान वाले इसकी याद दिलाते ही देते होंगे। हैंग होना समस्या तो है पर यह आपकी आधुनिकता भी दर्शा ही जाता है। हैंग की समस्या से पीड़ित हैं तो समझ लीजिए आप आज के जमाने के साथ चल रहे हैं।
हैंग से मतलब मोबाइल या कम्प्यूटर के हैंग होने से ही निकालिए तो अच्छा हैै। वरना इसके कई अर्थ और भी हैं, जो कुछ के लिए आधुनिकता के परिचय बने हुए हैं। बहरहाल हैंग ने मोबाइल कम्प्यूटर से निकलकर तेज रफतार लाइफ में भी प्रवेश करना शुरू कर दिया है। तो हैंग से बचकर रहने में ही भलाई है। खुशियां तो हैंग से निजात पाकर ही मिलेगी। बहरहाल रोज की भागादौड़ी और व्यस्त दिनचर्या ने हमें लगभग हैंग का शिकार बना ही दिया है। लाइफ भी हैंग होने लगी है। पर एंटीवायरस कम ही हैं। सुबह से लेकर शाम तक इशारों पर नाचना। समझदार तो इशारे करने वालों को समझ ही सकते हैं। इशारे करने वालों को भी कोई न कोई इशारे कर ही रहा होता है। उसे भी क्या दोष दें। इनसे उपर वालों की बात ही अलग है। खैर बात हैंग की ही करते हैं। सुबह किसी आईफोन की तरह लगने वाले अच्छे भले कामकाजी इंसान की हालत तो शाम ढलते ढलते अनब्रांडेड मोबाइल की तरह हो जाती है। घर पहुंचते पहुंचते स्विच आॅफ सी स्थिति हो जाती है। इस बीच हैंग होते रहना दिनभर चलता रहता है। नेट की दुनिया में वक्त बड़ी तेजी से गुजरता महसूस हो रहा है। जैसे 4जी का डेटा पैक। लाइफ तो बस हर रोज हैंग होते होते कट रही है। इस हैंग का एंटीवायरस खोजने को लेकर शायद ही कोई विशेषज्ञ सिर खपा रहा होगा। क्योंकि वह भी तो हैंग के अजीब कष्ट से सुरक्षित न रहता होगा। हैंग ने हमारे जीवन में पैठ बना लिया है। रोज रोज इसका दायरा भी बढता जा रहा है। किसी की बातों को सुनकर, किसी चीज को देखकर, काम के प्रेशर से, किसी की चुगली तो किसी के ताने सुनकर हैंग होना पड़ना आम होता जा रहा है । दिक्कत बढ़ रही। एंटीवायरस नहीं मिल रहा। कई तो हैंग का उपचार बताने को लेकर हैंग हुए जा रहे हैं। ये कर लो, वो कर लो, ये किया करो, ऐसे रहा करो तमाम तरह की नसीहतें। कुछ नसीहते एवं उपाए तो ऐसे होते है जिन्हें सुनकर ही दो दिन तक हैंग होना पडता है। तो दोस्तों हैंग की समस्या बढती ही जा रही है। हैंग के लिए हम भी थोड़े जिम्मेदार तो हैं ही। चिंतन मनन की पहले ही जरूरत थी। अब वक्त निकल गया है। नवजवानों के पास अब भी समय है। अभी से एंटीवायरस तैयार करने की कोशिस करें। ताकि आगे लाइफ हैंगमुक्त आनंदमय हो।
Ab Achaa Lagta Hai Viral Hona...
सेराज खान @ 29/01/2017
अब वायरल होना अच्छा लगता है। कभी नाम सुनते ही कड़वी दवाइयां याद आती थीं। भला हो इंटरनेट की दुनिया का जिसने इसके मायने ही बदल दिए। अब वायरल होने को अच्छा समझा जाने लगा है। हां गांवों में अब भी पुरनियों में वायरल का डर रहता है। अब तो वायरल होना उपलब्धि की श्रेणी में भी खूब गिना जा रहा है। इसके लिए तमाम हथकंडे भी अपना लिए जाते हैं। आलम यह है कि अफवाह भी वायरल की दुनियां में हकीकत सी लगने लगती है। सोषल साइट्स पर लाइक होने के लिए तरह तरह के जतन किए जा रहे। कोई बिल्डिंग पर तो कोई ट्रेन की छत पर ही चढ़ जाता है। नतीजा चाहे जो हो लाइक्स के दिवाने कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
धीरे-धीरे सभी इसमें शामिल होते जा रहे हैं। कोई दूर रहना चाहता है तो उसे पिछडा हुआ भी मान लिया जाता है। इस दौड़ में सब शामिल होकर आगे रहने की चाहत रख रहे हैं। कई संस्थानों में तो दबाव तक बन रहे हैं। बेचारा कर्मचारी भी बेमन से सबकुछ करता है। भले ही उसे अच्छा लगे या खराब। लाइक्स तो संस्था को भी चाहिए ही। आखिर उसके प्रतिस्पर्धी भी तो ऐसा कर रहे हैं। कोई सामग्री पसंद की गई तो वाहवाही भी बांट दी जाती है। वायरल पर तो सिर आंखों पर बिठाने की परंपरा है। वायरल होने के इस दौर में जेब में कुछ हो न हो। चकाचक स्मार्ट फोन तो रहता ही है। कुछ के पास सस्ता तो कुछ के पास महंगा। फ्री डाटा ने तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को इंटरनेट का चस्का सा लगा दिया है। जो स्मार्ट फोन व इंटरनेट से दूर थे वे भी मोबाइल से लैस रहने लगे हें। मोबाइल इंटरनेट तो दोस्त की जगह लेते जा रहे हैं। घंटों सोशल साइट्स पर वक्त बिताना और पास के दोस्तों को छोड़ दूर के साथियों के साथ चर्चा करना भाने लगा है। उसपर भी वायरल हुई चीजों पर ध्यान ज्यादा ही रहता है। ऐसा वीडियो] पोस्ट] तस्वीर सामने आते ही लाइकस या कमेंट्स कर अपना योगदान भी देते है। भले ही इससे लेना देना हो या नहीं। खबरे तो सबसे पहले इनतक पहुंच जाती हैं। इसका पत्रकार को भले ज्ञान न हो इंटरनेटधारी इनपर गहन चर्चा तक कर डालते हैं। चर्चा की दशा भी पांचवीं से लेकर परास्तनातक स्तर की हो सकती है। वायरल होने या वायरल पोस्ट का शौक सिर्फ इंटरनेटधारियों को ही नहीं बल्कि नेता जी लोेग को भी खूब रहता है। कमेंट भी होते हैं। सब समझते हुए भी ना समझों वाली कमेंट तो इन्हें लोकप्रियता प्रदान करने में मददगार साबित होते हैं। खबरची तो इसमें घी ही डाल देते हें। कुछ समझदार तो घास भी नहीं डालते। जिक्र जरूर कर देते हैं। पर इनकी संख्या थोडी कम होती है। ऐसे में नेता जी भी मंशा में कामयाब हो जाते हैं। हम जैसे बहुत से ग्रामीण प्रेमी अब भी वायरल होने से बचते है। हर मौसम में ख्याल रखना पड़ता है। मौसम की अनिश्चितता तो रोज ही नया वातावरण पैदा करने की फिराक में ही रहती है। वायरल होने का डर तो बना ही रहेगा न दोस्तों। इम्यूनिटी का सवाल है। आजकल लिखने वालों की तो कम ही होती है।
अब वायरल होना अच्छा लगता है। कभी नाम सुनते ही कड़वी दवाइयां याद आती थीं। भला हो इंटरनेट की दुनिया का जिसने इसके मायने ही बदल दिए। अब वायरल होने को अच्छा समझा जाने लगा है। हां गांवों में अब भी पुरनियों में वायरल का डर रहता है। अब तो वायरल होना उपलब्धि की श्रेणी में भी खूब गिना जा रहा है। इसके लिए तमाम हथकंडे भी अपना लिए जाते हैं। आलम यह है कि अफवाह भी वायरल की दुनियां में हकीकत सी लगने लगती है। सोषल साइट्स पर लाइक होने के लिए तरह तरह के जतन किए जा रहे। कोई बिल्डिंग पर तो कोई ट्रेन की छत पर ही चढ़ जाता है। नतीजा चाहे जो हो लाइक्स के दिवाने कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
धीरे-धीरे सभी इसमें शामिल होते जा रहे हैं। कोई दूर रहना चाहता है तो उसे पिछडा हुआ भी मान लिया जाता है। इस दौड़ में सब शामिल होकर आगे रहने की चाहत रख रहे हैं। कई संस्थानों में तो दबाव तक बन रहे हैं। बेचारा कर्मचारी भी बेमन से सबकुछ करता है। भले ही उसे अच्छा लगे या खराब। लाइक्स तो संस्था को भी चाहिए ही। आखिर उसके प्रतिस्पर्धी भी तो ऐसा कर रहे हैं। कोई सामग्री पसंद की गई तो वाहवाही भी बांट दी जाती है। वायरल पर तो सिर आंखों पर बिठाने की परंपरा है। वायरल होने के इस दौर में जेब में कुछ हो न हो। चकाचक स्मार्ट फोन तो रहता ही है। कुछ के पास सस्ता तो कुछ के पास महंगा। फ्री डाटा ने तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को इंटरनेट का चस्का सा लगा दिया है। जो स्मार्ट फोन व इंटरनेट से दूर थे वे भी मोबाइल से लैस रहने लगे हें। मोबाइल इंटरनेट तो दोस्त की जगह लेते जा रहे हैं। घंटों सोशल साइट्स पर वक्त बिताना और पास के दोस्तों को छोड़ दूर के साथियों के साथ चर्चा करना भाने लगा है। उसपर भी वायरल हुई चीजों पर ध्यान ज्यादा ही रहता है। ऐसा वीडियो] पोस्ट] तस्वीर सामने आते ही लाइकस या कमेंट्स कर अपना योगदान भी देते है। भले ही इससे लेना देना हो या नहीं। खबरे तो सबसे पहले इनतक पहुंच जाती हैं। इसका पत्रकार को भले ज्ञान न हो इंटरनेटधारी इनपर गहन चर्चा तक कर डालते हैं। चर्चा की दशा भी पांचवीं से लेकर परास्तनातक स्तर की हो सकती है। वायरल होने या वायरल पोस्ट का शौक सिर्फ इंटरनेटधारियों को ही नहीं बल्कि नेता जी लोेग को भी खूब रहता है। कमेंट भी होते हैं। सब समझते हुए भी ना समझों वाली कमेंट तो इन्हें लोकप्रियता प्रदान करने में मददगार साबित होते हैं। खबरची तो इसमें घी ही डाल देते हें। कुछ समझदार तो घास भी नहीं डालते। जिक्र जरूर कर देते हैं। पर इनकी संख्या थोडी कम होती है। ऐसे में नेता जी भी मंशा में कामयाब हो जाते हैं। हम जैसे बहुत से ग्रामीण प्रेमी अब भी वायरल होने से बचते है। हर मौसम में ख्याल रखना पड़ता है। मौसम की अनिश्चितता तो रोज ही नया वातावरण पैदा करने की फिराक में ही रहती है। वायरल होने का डर तो बना ही रहेगा न दोस्तों। इम्यूनिटी का सवाल है। आजकल लिखने वालों की तो कम ही होती है।
Baat Yuvao Ki बात युवाओ की Berojgaari Par ek Charcha
---बात युवाओ की ----
आज कल देखने में ये आ रहा है की दिन प्रतिदिन युवा बेरोजगार नजर आ रहे है
युवाओ में बेरोजगारी की मात्रा बढ़ती ही जा रही है यह एक बेहद चिंता का विषय है आओ इसको समझते है ताकि कुछ हद तक युवाओ की परेशानी दूर हो सके युवा पीढ़ी आये दिन शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना योगदान दे रहा है फिर भी उन युवाओ की पढ़ाई लिखाई के आधार पर उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है सरल शब्दो में युवा पीढ़ी शिक्षा तो हासिल कर रही है फिर भी उंन्हें काम नहीं मिल पा रहा है जिससे युवा परेशान रहते है आज कल देखने में यह आ रहा है की सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है, तो इस क्षेत्र में भी अपना ध्यान दे टेक्नॉलॉजि की इस दुनिया में कंप्यूटर ऑपपरेटर , मोबाइल रिपेयरिंग , मोबाइल दुकान विभिन्न ऐसे विकल्प है जो युवाओ को एक बेहतरीन रोजगार का क्षेत्र दे सकते है , जो अभी-- अभी अपना कैरिअर शिक्षा के क्षेत्र में बनाना चाहते है वे ऐसे कोर्स सब्जेक्ट का चयन करे ताकि उस कोर्स सब्जेक्ट के पूर्ण होते ही उनका रोजगार मिलना तय हो जाये
अगर आप को यह बात पसंद आयी हो तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर से
---------रियाज़ तनवीर शेख---------- Rtsyara11.blogpost.com
युवाओ में बेरोजगारी की मात्रा बढ़ती ही जा रही है यह एक बेहद चिंता का विषय है आओ इसको समझते है ताकि कुछ हद तक युवाओ की परेशानी दूर हो सके युवा पीढ़ी आये दिन शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना योगदान दे रहा है फिर भी उन युवाओ की पढ़ाई लिखाई के आधार पर उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है सरल शब्दो में युवा पीढ़ी शिक्षा तो हासिल कर रही है फिर भी उंन्हें काम नहीं मिल पा रहा है जिससे युवा परेशान रहते है आज कल देखने में यह आ रहा है की सब कुछ ऑनलाइन हो रहा है, तो इस क्षेत्र में भी अपना ध्यान दे टेक्नॉलॉजि की इस दुनिया में कंप्यूटर ऑपपरेटर , मोबाइल रिपेयरिंग , मोबाइल दुकान विभिन्न ऐसे विकल्प है जो युवाओ को एक बेहतरीन रोजगार का क्षेत्र दे सकते है , जो अभी-- अभी अपना कैरिअर शिक्षा के क्षेत्र में बनाना चाहते है वे ऐसे कोर्स सब्जेक्ट का चयन करे ताकि उस कोर्स सब्जेक्ट के पूर्ण होते ही उनका रोजगार मिलना तय हो जाये
अगर आप को यह बात पसंद आयी हो तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर से
---------रियाज़ तनवीर शेख---------- Rtsyara11.blogpost.com
Garibi
गरीबी को हमारे समाज से दूर करने के लिए हमें क्या करना चाइये ताकि उन गरीब लोगो की गरीबी दूर हो सके गरीबी दूर करने के लिए हमें ये प्रयास करना चाहिए , घर में रखी पुरानी या जो हमारे उपयोग में ना आती हो उन चीजो को बेच कर या गरीबो को देकर हम गरीब जरुरत मंदो की की मदद आसानी से कर सकते है ताकि इस से उन गरीबो की परेशानी काफी हद तक काम हो सकती है मेरा यह ब्लॉग शेयर करे ताकि कोई ना कोई मेरा यह ब्लॉग पड़ कर गरीबो की मदद के लिए प्रयास करेगा आप का अपना - रियाज़ तनवीर शेख -
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