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Ab Achaa Lagta Hai Viral Hona...





अब अच्छा लगता है वायरल होना---
सेराज खान @ 29/01/2017
अब वायरल होना अच्छा लगता है। कभी नाम सुनते ही कड़वी दवाइयां याद आती थीं। भला हो इंटरनेट की दुनिया का जिसने इसके मायने ही बदल दिए। अब वायरल होने को अच्छा समझा जाने लगा है। हां गांवों में अब भी पुरनियों में वायरल का डर रहता है। अब तो वायरल होना उपलब्धि की श्रेणी में भी खूब गिना जा रहा है। इसके लिए तमाम हथकंडे भी अपना लिए जाते हैं। आलम यह है कि अफवाह भी वायरल की दुनियां में हकीकत सी लगने लगती है। सोषल साइट्स पर लाइक होने के लिए तरह तरह के जतन किए जा रहे। कोई बिल्डिंग पर तो कोई ट्रेन की छत पर ही चढ़ जाता है। नतीजा चाहे जो हो लाइक्स के दिवाने कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
धीरे-धीरे सभी इसमें शामिल होते जा रहे हैं। कोई दूर रहना चाहता है तो उसे पिछडा हुआ भी मान लिया जाता है। इस दौड़ में सब शामिल होकर आगे रहने की चाहत रख रहे हैं। कई संस्थानों में तो दबाव तक बन रहे हैं। बेचारा कर्मचारी भी बेमन से सबकुछ करता है। भले ही उसे अच्छा लगे या खराब। लाइक्स तो संस्था को भी चाहिए ही। आखिर उसके प्रतिस्पर्धी भी तो ऐसा कर रहे हैं। कोई सामग्री पसंद की गई तो वाहवाही भी बांट दी जाती है। वायरल पर तो सिर आंखों पर बिठाने की परंपरा है। वायरल होने के इस दौर में जेब में कुछ हो न हो। चकाचक स्मार्ट फोन तो रहता ही है। कुछ के पास सस्ता तो कुछ के पास महंगा। फ्री डाटा ने तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को इंटरनेट का चस्का सा लगा दिया है। जो स्मार्ट फोन व इंटरनेट से दूर थे वे भी मोबाइल से लैस रहने लगे हें। मोबाइल इंटरनेट तो दोस्त की जगह लेते जा रहे हैं। घंटों सोशल साइट्स पर वक्त बिताना और पास के दोस्तों को छोड़ दूर के साथियों के साथ चर्चा करना भाने लगा है। उसपर भी वायरल हुई चीजों पर ध्यान ज्यादा ही रहता है। ऐसा वीडियो] पोस्ट] तस्वीर सामने आते ही लाइकस या कमेंट्स कर अपना योगदान भी देते है। भले ही इससे लेना देना हो या नहीं। खबरे तो सबसे पहले इनतक पहुंच जाती हैं। इसका पत्रकार को भले ज्ञान न हो इंटरनेटधारी इनपर गहन चर्चा तक कर डालते हैं। चर्चा की दशा भी पांचवीं से लेकर परास्तनातक स्तर की हो सकती है। वायरल होने या वायरल पोस्ट का शौक सिर्फ इंटरनेटधारियों को ही नहीं बल्कि नेता जी लोेग को भी खूब रहता है। कमेंट भी होते हैं। सब समझते हुए भी ना समझों वाली कमेंट तो इन्हें लोकप्रियता प्रदान करने में मददगार साबित होते हैं। खबरची तो इसमें घी ही डाल देते हें। कुछ समझदार तो घास भी नहीं डालते। जिक्र जरूर कर देते हैं। पर इनकी संख्या थोडी कम होती है। ऐसे में नेता जी भी मंशा में कामयाब हो जाते हैं। हम जैसे बहुत से ग्रामीण प्रेमी अब भी वायरल होने से बचते है। हर मौसम में ख्याल रखना पड़ता है। मौसम की अनिश्चितता तो रोज ही नया वातावरण पैदा करने की फिराक में ही रहती है। वायरल होने का डर तो बना ही रहेगा न दोस्तों। इम्यूनिटी का सवाल है। आजकल लिखने वालों की तो कम ही होती है।