नेटवर्क बिना चैन कहां रे...
@S.Khan June 22, 2017
प्यार बिना चैन कहां रे... प्यार बिना चैन कहां रे... कभी ये गीत बहुत मशहूर हुआ था। उस दौर में इस गीत के तो युवा खूब दीवाने थे। आज भी सुनने में ये गीत कानों को बड़ा प्रिय लगता है। पर, अब जमाना नए किस्म के यंगस्टर्स का है। या यूं भी कह सकते हैं कि ये टेक्नोप्रेमी जनरेशन है। ऊपर जो गीत की पंक्ति लिखी है, वो आज बनती तो शायद ऐसी होती कि ...नेटवर्क बिना चैन कहां रे... नेटवर्क बिना चैन कहां रे...। सुबह उठकर नाश्ता मिले चाहे नहीं सबसे पहले ये नेटवर्क ही चेक करते हैं। बिना नेटवर्क के तो जैसे सब सून ही महसूस होता है। नेटवर्क है, तो चेहरे पर मुस्कान और गला थोड़ा नीचे की तरफ झुका मिलता है। फिर नजरें भी इधर उधर नहीं फिरा करती। क्या तहजीब है, नजरें, गर्दन सब झुकी झुकीं हुईं। अक्सर लोग बच्चों से नजरें झुकाकर चलने को बतौर अच्छा तहजीब समझाया करते थे। अब शायद कम ही समझाना पड़ता होगा। नेटवर्क तो अब धीरे-धीरे बुनियादी जरूरत जैसी बनती जा रही है। बिजली, पानी, सड़क की तरह ही आज हर तरफ नेटवर्क की उपलब्धता जरूरी होती जा रही है। कुछ सेकंड के लिए भी नेटवर्क गायब हुआ तो चेहरे पर शिकन बनने लगती है। मुस्कुराता हुआ चेहरा भी टेंशनमय सा दिखने लगता है। नेटवर्क के चकाचक रहने पर तो पूछिये ही मत। लुंगी में भी #हाय गाइस #हेलो फ्रेंड्स #थैंक्स ब्रो जैसे ही शब्द निकलते हैं। स्पेलिंग दुरुस्त रहे इसकी भी झन्झट अब नहीं ही है। कौन सा कि शब्द पूरा लिखना होता है, जितनी टूटी फूटी लिखो उतना ही अच्छा। उतना ही मस्त। वाक्य पर भी यही ट्रेंड काम करता प्रतीत होता है। रही सही बातें इमोजी या स्टिकर्स से पूरी कर ली जाती हैं। टीनेजर्स के जुबानी बातों का क्रेज़ थोड़ा कम नजर आता है। जिन शब्दों का उपयोग बढ़ रहा है, मैं तो उन्हें ई-शब्द ही कहता हूं। ई-शब्द युवाओं की जज्बातों को शायद ठीक से व्यक्त कर रहे हों। वाट्सएप, एफबी, ट्विटर पर ऐसे शब्द खूब पाए जाते हैं। ई-शब्दों का ट्रेंड है। जिसे टीनेजर्स भलीभांति जानते और समझते हैं। लेकिन, अच्छा नेटवर्क नहीं तो इनकी जुबान बन्द, और नेटवर्क फुल तो एक पल में 4 सौ लोगों तक को #हेलो... एक बार में ही बोल देते हैं। सब नेटवर्क का ही कमाल है। बड़े शहरों में हमेशा अच्छा तो छोटे शहरों में भी अब ठीक-ठाक ही नेटवर्क रहता। कस्बों में बीच-बीच में गायब होने वाला तो गांवों में किस्मत भरोसे ही अच्छा नेटवर्क मिलता है। खासकर 4G वाला नेटवर्क। इससे कम का ट्रेंड तो अब #यंग गाइज, के बीच रह नहीं गया है। जहां नेटवर्क अच्छा है। वहां तो सब ठीक है। हर बात पर ##यो-यो मार्का फोटो अपलोड हो जाते हैं। कोई दिक्कत नहीं आती। पर, देहात में तो अब भी कई दफा नेटवर्क तलाश करनी पड़ती है। हाथ उठाकर नेटवर्क को मनाना या छत पर जाकर नेटवर्क को बुलाना ये बात गुजरे जमाने की हो गई है। बाइक चश्मे से लैस रहने वाले टीनेजर्स तो नेटवर्क से कोई समझौता नहीं करते। नेटवर्क ढूंढकर ही दम लेते हैं। इसके लिए भले ही गांव से दूर 4G वाले टावर तक ही क्यों न जाना पड़े। वो ख़ुशी ख़ुशी जाते हैं। जहां बढ़िया नेटवर्क मिलता हो और बैठकी की भी व्यवस्था हो, फिर तो सोने पे सुहागा जैसा ही हो जाता है। फिर तो बैठकी के आसपास की दीवारों पर प्लास्टर या रंग की जरूरत भी नहीं पड़ती। चुनाखली तो भूल ही जाइए। इन दीवारों पर बड़ी मुश्किल से ही चढ़ पाएगी। क्या कहना चाहता हूं, आप समझ तो गए ही होंगे। नेटवर्क की और ज्यादा महिमा क्या लिखूं। मेरा नेटवर्क ही चला गया। ##बाय गाइज@। ब्लॉग पर आते रहिएगा...।
@S.Khan June 22, 2017
प्यार बिना चैन कहां रे... प्यार बिना चैन कहां रे... कभी ये गीत बहुत मशहूर हुआ था। उस दौर में इस गीत के तो युवा खूब दीवाने थे। आज भी सुनने में ये गीत कानों को बड़ा प्रिय लगता है। पर, अब जमाना नए किस्म के यंगस्टर्स का है। या यूं भी कह सकते हैं कि ये टेक्नोप्रेमी जनरेशन है। ऊपर जो गीत की पंक्ति लिखी है, वो आज बनती तो शायद ऐसी होती कि ...नेटवर्क बिना चैन कहां रे... नेटवर्क बिना चैन कहां रे...। सुबह उठकर नाश्ता मिले चाहे नहीं सबसे पहले ये नेटवर्क ही चेक करते हैं। बिना नेटवर्क के तो जैसे सब सून ही महसूस होता है। नेटवर्क है, तो चेहरे पर मुस्कान और गला थोड़ा नीचे की तरफ झुका मिलता है। फिर नजरें भी इधर उधर नहीं फिरा करती। क्या तहजीब है, नजरें, गर्दन सब झुकी झुकीं हुईं। अक्सर लोग बच्चों से नजरें झुकाकर चलने को बतौर अच्छा तहजीब समझाया करते थे। अब शायद कम ही समझाना पड़ता होगा। नेटवर्क तो अब धीरे-धीरे बुनियादी जरूरत जैसी बनती जा रही है। बिजली, पानी, सड़क की तरह ही आज हर तरफ नेटवर्क की उपलब्धता जरूरी होती जा रही है। कुछ सेकंड के लिए भी नेटवर्क गायब हुआ तो चेहरे पर शिकन बनने लगती है। मुस्कुराता हुआ चेहरा भी टेंशनमय सा दिखने लगता है। नेटवर्क के चकाचक रहने पर तो पूछिये ही मत। लुंगी में भी #हाय गाइस #हेलो फ्रेंड्स #थैंक्स ब्रो जैसे ही शब्द निकलते हैं। स्पेलिंग दुरुस्त रहे इसकी भी झन्झट अब नहीं ही है। कौन सा कि शब्द पूरा लिखना होता है, जितनी टूटी फूटी लिखो उतना ही अच्छा। उतना ही मस्त। वाक्य पर भी यही ट्रेंड काम करता प्रतीत होता है। रही सही बातें इमोजी या स्टिकर्स से पूरी कर ली जाती हैं। टीनेजर्स के जुबानी बातों का क्रेज़ थोड़ा कम नजर आता है। जिन शब्दों का उपयोग बढ़ रहा है, मैं तो उन्हें ई-शब्द ही कहता हूं। ई-शब्द युवाओं की जज्बातों को शायद ठीक से व्यक्त कर रहे हों। वाट्सएप, एफबी, ट्विटर पर ऐसे शब्द खूब पाए जाते हैं। ई-शब्दों का ट्रेंड है। जिसे टीनेजर्स भलीभांति जानते और समझते हैं। लेकिन, अच्छा नेटवर्क नहीं तो इनकी जुबान बन्द, और नेटवर्क फुल तो एक पल में 4 सौ लोगों तक को #हेलो... एक बार में ही बोल देते हैं। सब नेटवर्क का ही कमाल है। बड़े शहरों में हमेशा अच्छा तो छोटे शहरों में भी अब ठीक-ठाक ही नेटवर्क रहता। कस्बों में बीच-बीच में गायब होने वाला तो गांवों में किस्मत भरोसे ही अच्छा नेटवर्क मिलता है। खासकर 4G वाला नेटवर्क। इससे कम का ट्रेंड तो अब #यंग गाइज, के बीच रह नहीं गया है। जहां नेटवर्क अच्छा है। वहां तो सब ठीक है। हर बात पर ##यो-यो मार्का फोटो अपलोड हो जाते हैं। कोई दिक्कत नहीं आती। पर, देहात में तो अब भी कई दफा नेटवर्क तलाश करनी पड़ती है। हाथ उठाकर नेटवर्क को मनाना या छत पर जाकर नेटवर्क को बुलाना ये बात गुजरे जमाने की हो गई है। बाइक चश्मे से लैस रहने वाले टीनेजर्स तो नेटवर्क से कोई समझौता नहीं करते। नेटवर्क ढूंढकर ही दम लेते हैं। इसके लिए भले ही गांव से दूर 4G वाले टावर तक ही क्यों न जाना पड़े। वो ख़ुशी ख़ुशी जाते हैं। जहां बढ़िया नेटवर्क मिलता हो और बैठकी की भी व्यवस्था हो, फिर तो सोने पे सुहागा जैसा ही हो जाता है। फिर तो बैठकी के आसपास की दीवारों पर प्लास्टर या रंग की जरूरत भी नहीं पड़ती। चुनाखली तो भूल ही जाइए। इन दीवारों पर बड़ी मुश्किल से ही चढ़ पाएगी। क्या कहना चाहता हूं, आप समझ तो गए ही होंगे। नेटवर्क की और ज्यादा महिमा क्या लिखूं। मेरा नेटवर्क ही चला गया। ##बाय गाइज@। ब्लॉग पर आते रहिएगा...।
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